चित्थप्पा का निधन एक बड़ा काली श्तल को छोड़ा है.| उन्होंने कई विषयों पर अपनी निपुनथा का प्रकटन किया है | तामिल साहित्य पर उसका बड़ा अधिकार था | काले चश्मे पहनकर वे पैदल चल पड़ेंगे थो , उनका पीछा करना बहुत मुश्किल रहता था | हमारे पिताजी का बहुत प्यारा भैया थे वें | मेरे chess केल का गुरु थे | बहुत मुश्किलों को पार कर अपने बच्चों को इस समाज में बड़ा स्थान दिया है | अपने शारीरिक हिमसावों से उनका छुटकारा मिला है | भगवान से प्रार्थना करेंगे की मणि और लता को यह दुख सहने का बल दें |
हाँ. तुम लोगोंने ठीक कहा है I पिछले पीडी के लोगों में जैसा प्रेम था, वैसा आजकल कहाँ देखने को मिल्ता है? कितना कुछ हो गया कुछ ही महीनों में! मृत्यु से कोई भी बच नहीं सकता I उसकी ज़रूरत भी नहीं है I जो लोग चले जाते हैं, उनकी याद तो सताती ही रहती है I आप दोनोंको मौसी और मौसाजी से मुझसे ज़्यादा निकटता है I आप लोगों की ब्लाग पड़ने के बाद मैं महसूस कर रही हूँ की मैंने जितना खोया है I हाँ. मुझे भी मौसाजी पर बहुत गर्व था I मौसी की मृत्यु के बाद जब हम श्रीरंगम गए, तब मौसाजी को देखकर ही ज्यादा दुःख हुवा I उनकी बातों को सुनकर हमें भी तमिल पर ज्यादा प्रेम होने लगा I जो लोग इस दुनियां में रहकर चले गए, उन्होंने उसको पहले से अच्छा जगह बनाया है I उनके जीवन में कई कठिनायियाँ थीं I लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं माना I हमारा जीवन कैसा है , यह तो हम नहीं कह सकते I हमारे बच्चे ही उसे judge कर सकते हैं I अम्मा, मौसी और मौसा की मृत्यु दुखदायक ही तो है I लेकिन, उसके बाद ही हमने लिखना शुरू किया है Iयह कैसी विडम्बना है, चिक्कप्पा तो तमिल के विद्वान थे I उनके निधन पर गीता ने जो लिखा, वह हिंदी में है I आप दोनों ने लिखा. मैंने तो सिर्फ comment किया है I लता और मणि ने खूब अपने मांबाप की सेवा की है. भगवान उनको साहस दे और सारा मंगल दे! रमा
चित्थप्पा का निधन एक बड़ा काली श्तल को छोड़ा है.|
ReplyDeleteउन्होंने कई विषयों पर अपनी निपुनथा का प्रकटन किया है |
तामिल साहित्य पर उसका बड़ा अधिकार था |
काले चश्मे पहनकर वे पैदल चल पड़ेंगे थो , उनका पीछा करना बहुत मुश्किल रहता था |
हमारे पिताजी का बहुत प्यारा भैया थे वें |
मेरे chess केल का गुरु थे |
बहुत मुश्किलों को पार कर अपने बच्चों को इस समाज में बड़ा स्थान दिया है |
अपने शारीरिक हिमसावों से उनका छुटकारा मिला है |
भगवान से प्रार्थना करेंगे की मणि और लता को यह दुख सहने का बल दें |
हाँ. तुम लोगोंने ठीक कहा है I पिछले पीडी के लोगों में जैसा प्रेम था, वैसा आजकल कहाँ देखने को मिल्ता है? कितना कुछ हो गया कुछ ही महीनों में! मृत्यु से कोई भी बच नहीं सकता I उसकी ज़रूरत भी नहीं है I जो लोग चले जाते हैं, उनकी याद तो सताती ही रहती है I आप दोनोंको मौसी और मौसाजी से मुझसे ज़्यादा निकटता है I आप लोगों की ब्लाग पड़ने के बाद मैं महसूस कर रही हूँ की मैंने जितना खोया है I हाँ. मुझे भी मौसाजी पर बहुत गर्व था I मौसी की मृत्यु के बाद जब हम श्रीरंगम गए, तब मौसाजी को देखकर ही ज्यादा दुःख हुवा I उनकी बातों को सुनकर हमें भी तमिल पर ज्यादा प्रेम होने लगा I जो लोग इस दुनियां में रहकर चले गए, उन्होंने उसको पहले से अच्छा जगह बनाया है I उनके जीवन में कई कठिनायियाँ थीं I लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं माना I हमारा जीवन कैसा है , यह तो हम नहीं कह सकते I हमारे बच्चे ही उसे judge कर सकते हैं I
ReplyDeleteअम्मा, मौसी और मौसा की मृत्यु दुखदायक ही तो है I लेकिन, उसके बाद ही हमने लिखना शुरू किया है Iयह कैसी विडम्बना है, चिक्कप्पा तो तमिल के विद्वान थे I उनके निधन पर गीता ने जो लिखा, वह हिंदी में है I आप दोनों ने लिखा. मैंने तो सिर्फ comment किया है I लता और मणि ने खूब अपने मांबाप की सेवा की है. भगवान उनको साहस दे और सारा मंगल दे!
रमा